हनुमान सहस्त्रनामावली
हनुमान सहस्त्रनामावली
- हनुमान्: – विशाल और टेढी ठुड्डी वाले ।
- श्रीप्रद: – शोभा प्रदन करने वाले ।
- वायुपुत्र: – वायु के पुत्र
- रुद्र: – जो रुद्र के अवतार हैं (हनुमान जी एकादश रुद्र हैं)
- अनघ: -पाप से रहित
- अजर: – वृद्धावस्था से रहित
- अमृत्य: – मृत्यु से रहित
- वीरवीर: – वीरों में अग्रणी
- ग्रामवास: – गाँवों में निवास करने वाले
- जनाश्रय:- समस्त जनों को आश्रय प्रदान करने वाले
- धनद: -धन धान्य देनेवाले
- निर्गुण: -सतोगुण,रजोगुण एवं तमोगुण से रहित ।
- अकाय: -भौतिक देह से रहित ।
- वीर: – पराक्रमी ।
- निधिपति: – नवनिर्धायों के स्वामी ।
- मुनि: – वेद शास्त्रों के गूहार्थ के ज्ञाता ।
- पिंगाक्ष: – पीले-पीले नेत्रों वाले ।
- वरद: – मनोवांछित वरदान देने वाले ।
- वाग्मी: – कुशल वक्ता ।
- सीताशोकविनाशन: – सीता जी के शोक को मिटाने वाले ।
- शिव: – मंगलमय ।
- सर्व: -सर्वस्वरूप ।
- पर: – प्रकृति से भी परे ।
- अव्यक्त: -अव्यक्त स्वरूपवाले ।
- व्यक्ताव्यक्त: -जो श्रद्धालु भक्तों के समक्ष व्यक्त तथा अभक्त्जनों के लिए अव्यक्त है ।
- रसाधर:- पृथ्वी को धारण करने वाले ।
- पिंगरोम: -पीले रोम वाले ।
- पिंगकेश: -पीले केशों वाले ।
- श्रुतिगम्य: -जो श्रुतियों द्वारा जानने योग्य है ।
- सनातन: -सदैव विद्यमान रहने वाले ।
- अनादि: – आदि से रहित ।
- भगवान: -ऐश्वर्य मिक्त ।
- देव:- अत्यंत दीप्त स्वरूप ।
- विश्वहेतु: -जगत् के मूल कारण ।
- निरामय: -नीरोग ।
- आरोग्यकर्ता: – आरोग्य प्रदान करने वाले ।
- विश्वेश:- विश्व के ईश्वर ।
- विश्वनाथ: -संसार के स्वामी ।
- हरीश्वर: -वानरों के स्वामी ।
- भर्ग:- तेज स्वरूप ।
- राम: – जिनमें भक्तलोग रमण करते हैं ।
- रामभक्त:- राम के भक्त ।
- कल्याणप्रकृति: – कल्याण करना जिनका सवभाव है ।
- स्थिर: -पर्वत के समान अचल ।
- विश्वम्भर: – विश्व का भरण –पोषण करनेवाले ।
- विश्वमूर्ति: -विश्व जिनकी मूर्ति है।
- विश्वाकार: – जो सर्वस्वरूप हैं ।
- विश्वप: – जो विश्व का पालन करते हैं।
- विश्वात्मा: -जो विश्व की आत्मा हैं।
- विश्वसेव्य: -सारे विश्व के सेवनीय।
- विश्व:- जो विश्व हैं।
- विश्वहर: – विश्व के हर्ता ।
- रवि: – सुर्यस्वरूप ।
- विश्वचेष्ट: – विश्व के हित में चेष्टा करनेवाले ।
- विश्वगम्य: -विश्व के प्राणिमात्र के प्राप्त करने योग्य ।
- विश्वध्येय: -सबके ध्यान करने योग्य ।
- कलाधर: – कलाओं को धारण करनेवाले ।
- प्लवंगम: – उछलते- कूदते चलनेवाले ।
- कपिश्रेष्ठ: – वानरों में श्रेष्ठ ।
- ज्येष्ठ: – महान् ।
- वैद्य: -भवरोग के चिकित्सक ।
- वनेचर: – सीताजी की खोज में वन-वन भटकने वाले ।
- बाल: – बालक के समान निश्चल अथवा बालरूप हो सुरसा के मुँह में प्रवेश करनेवाले ।
- वृद्ध: – बढ़कर पर्वताकार होनेवाले ।
- युवा: – सदा तरुण स्वरूप ।
- तत्वम्: – संसार के कारण स्वरूप ।
- तत्त्वगम्य: -तत्वरूप में जानने योग्य ।
- सखा: -सबके सखा ।
- अज: -अजन्मा ।
- अञ्जनासूनु: – माता अञ्जना के पुत्र ।
- अव्यग्र:- कभी व्यग्र न होनेवाले ।
- ग्रामख्यात: – गाँव-गाँव में प्रसिद्ध ।
- धराधर: – पृथ्वी को धारण करनेवाले- पर्वताकार ।
- भू: – पृथ्वीलोकस्वरूप ।
- भुव: – भुवर्लोकस्वरूप ।
- स्व: – स्वर्गलोकस्वरूप ।
- महर्लोक: – महर्लोकस्वरूप ।
- जनलोक: – जनलोकस्वरूप ।
- तप: तपोलोकस्वरूप ।
- अव्यय: – अविनाशीस्वरूप ।
- सत्यम्:- संतों के लिए हितकर ।
- ॐकारगम्य: – ॐकारके द्वारा प्राप्त होनेवाले ।
- प्रणव: – ॐकारस्वरूप ।
- व्यापक: – सर्वव्यापी ।
- अमल: – दोषरहित ।
- शिवधर्म प्रतिष्ठाता: – पाशुपत अथवा कल्याण- धर्म को प्रतिष्ठित करनेवाले ।
- रामेष्ट:- जिनके श्रीराम इष्टदेव हैं ।
- फाल्गुन प्रिय: -जो अर्जुन के प्रिय हैं ।
- गोष्पदीकृतवारीश: – समुद्र को जलपूरित गोपद के समान लाँघनेवाले ।
- पूर्णकाम: -जिनकी सारी कामनाएँ पूर्ण हैं।
- धरापति: -पृथ्वी के स्वामी ।
- रक्षोघ्न: -राक्षसों को मारनेवाले ।
- पुण्डरीकाक्ष: – श्वेत कमल के समान नेत्रवाले ।
- शरणागतवत्सल: – शरण में आए हुये पर कृपा करनेवाले ।
- जानकीप्राणदाता: – जानकीको जीवन प्रदान करनेवाले ।
- रक्षःप्राणापहारक: – राक्षसों का प्राण – नाश करनेवाले ।
- पूर्ण:- पूर्णकाम ।
- सत्य:- सत्यस्वरूप ।
- पीतवासा: -पीला वस्त्र धारण करनेवाले ।
- दिवाकर समप्रभ: – सूर्य के समान तेजस्वी ।
- देवोद्यानविहारी: – देवताओं के नंदन-वन में विहार करने वाले ।
- देवताभयभञ्जन: – देकताओं के भय को नष्ट करनेवाले ।
- भक्तोदयो: – भक्तों की उन्नति करनेवाले ।
- भक्तलब्ध: – भक्तों के दवारा प्राप्त ।
- भक्तपालन तत्पर: – भक्तों की रक्षा में तत्पर ।
- द्रोणहर्ता:- द्रोणाचलको उखाड़कर लानेवाले ।
- शक्तिनेता – शक्तियों के संचालक ।
- शक्तिराक्षसमारक: -शक्तिशाली राक्षसों को मारनेवाले ।
- अक्षघ्न: -अक्षकुमार को मारनेवाले ।
- रामदूत: -भगवान श्री रामचंद्र के दूत ।
- शाकिनी जीवहारक: – शाकिनी का प्राण हरण करनेवाले ।
- बुबुकारहताराति: – बुबुकार-ध्वनि से शत्रुका नाश करनेवाले ।
- गर्वपर्वत प्रमर्दन: -गर्वरूपी पर्वत्को चूर-चूर करनेवाले ।
- हेतु: – कारणरूप ।
- अहेतु: – कारणरहित ।
- प्रांशु: – बहुत उन्नत ।
- विश्वभर्ता: – विश्व का भरण पोषण करनेवाले ।
- जगद्गुरु: – सारे संसार के गुरु ।
- जगन्नेता: – संसार के नेता ।
- जगन्नाथ: – संसार के स्वामी ।
- जगदीश: – जगत् के ईश ।
- जनेश्वर: – भक्तों के ईश्वर ।
- जगद्धित: – संसार का हित करनेवाले ।
- हरि: – पापों को हरनेवाले ।
- श्रीश: – शोभा के स्वामी।
- गरुडस्मय भञ्जन: – गरुड़ के गर्व को नष्ट करनेवाले ।
- पार्थध्वज: – अर्जुन के ध्वज चिन्ह ।
- वायुपुत्र: – वायु के पुत्र ।
- अमितपुच्छ: – अपरिमित पूँछवाले ।
- अमित विक्रम: – असीम पराक्रम वाले ।
- ब्रह्मपुच्छ: – जिनकी पूँछ वर्द्धनशील है ।
- परब्रह्मपुच्छ: – जिनका परब्रह्म आधार है ।
- रामेष्टकारक: – जो श्रीरामके अभीष्ट कार्य को सिद्ध करते हैं ।
- सुग्रीवादियुतो: – सुग्रीवादि वानरों से युक्त ।
- ज्ञानी: – ज्ञान सम्पन्न ।
- वानर: – वनमें रहनेवालों की रक्षा करनेवाले ।
- वानरेश्वर: -वानरों के स्वामी ।
- कल्पस्थायी: – कल्पपर्यंत रहनेवाले ।
- चिरञ्जीवी: – चिरकालतक जीवित रहने वाले ।
- तपन:- सुर्य सदृश तेजस्वी ।
- सदाशिव: – सदा कल्याणस्वरूप ।
- सन्नत: – विद्या के दवारा जो सम्यक् रूप से विनयानवत हैं ।
- सद्गति: – संतों की गति हैं ।
- भुक्तिमुक्तिद: – भुक्ति और मुक्ति को देनेवाले।
- कीर्तिदायक: – कीर्तिप्रदान करनेवाले ।
- कीर्ति: – कीर्तिस्वरूप ।
- कीर्तिप्रद: – यशस्वी बनानेवाले ।
- समुद्र: – जो श्रीराम की मुद्रा या मुद्रिका साथ लिये हुए हैं ।
- श्रीपद: – बुद्धि या ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले ।
- शिव: – संसार का उच्छेद करनेवाले ।
- भक्तोदय: – भक्त के लिये प्रकट होनेवाले ।
- भक्तगम्य: – भक्त द्वारा प्राप्त होनेवाले ।
- भक्तभाग्यप्रदायक: -भक्त के लिये भाग्य प्रदायक ।
- उदधिक्रमण:- समुद्र लाँघने वाले ।
- देव:- देवस्वरूप ।
- संसारभयनाशन: – संसार का भयनाश करनेवाले ।
- वार्धिबन्धनकृद्: – समुद्र पर सेतु बाँधनेवाले।
- विश्वजेता: – विश्व को जीतनेवाले ।
- विश्वप्रतिष्ठित: – विश्व में प्रतिष्ठित ।
- लङ्कारि: – लंकाके शत्रु ।
- कालपुरुष: – कालरूपी पुरुष।
- लङ्केशगृह भञ्जन: – रावण के महलों को नष्ट करनेवाले ।
- भूतावास: भूतों के आवास – स्थल हैं ।
- वासुदेव: – विश्व में व्यापक ।
- वसु: – वसुस्वरूप ।
- त्रिभुवनेश्वर: – त्रिभुवन के स्वामी ।
- श्रीरामस्वरूप: – जो श्री राम तुल्य हैं ।
- कृष्ण:- चित्त को आकर्षित करनेवाले ।
- लङ्काप्रासादभञ्जन: – लंका के राक्षसों के महलों का विध्वंस करनेवाले ।
- कृष्ण: – कृष्णस्वरूप ।
- कृष्णस्तुत: – कृष्ण के दवारा स्तुति किये गये ।
- शान्त: – शांतस्वरूप ।
- शान्तिपद: – शांति प्रदान करनेवाले ।
- विश्वपावन: – विश्व को पवित्र करनेवाले ।
- विश्वभोक्ता: – सारे भोग्य पदार्थों के भोक्ता ।
- मारघ्न:- कामदेव का हनन करनेवाले ।
- ब्रह्मचारी: – आजन्म ब्रह्मचारी ।
- जितेन्द्रिय: – जिन्होंने इन्द्रियों को जीत लिया है ।
- ऊर्ध्वग: – आकाश-मार्ग से गमन करनेवाले ।
- लाङ्गुली: – बड़ी पूँछवाले ।
- माली: – मालावाले ।
- लाङ्गूलाहत राक्षस: – पूँछ से राक्षसों को मार डालनेवाले ।
- समीरतनुज: – वायुदेवता के पुत्र ।
- वीर: – शौर्यशाली ।
- वीरतार: – वीर शत्रुओं को मारकर तारनेवाले ।
- जयप्रद: – जय प्रदान करनेवाले ।
- जगन्मङ्गलद: – जगत् को मङ्गल प्रदान करनेवाले ।
- पुण्य: – भगवन्नाम- संकीर्तन से विश्वको पवित्र करनेवाले
- पुण्यश्रवण कीर्तन: – जिनकी कथाओं का श्रवण – कीर्तन पुण्य प्रद है ।
- पुण्यकीर्ति: – जिनका यशोगान पुण्यप्रद है।
- पुण्यगति: – जिनकी उपासना पुण्य का फल है ।
- जगत्पावनापावन: – जो जगत् को पवित्र करनेवालोंको पावन बनाते हैं ।
- देवेश: – देवताओं के स्वामी ।
- जितमार:- कामदेव को जीतनेवाले ।
- रामभक्ति विधायक: – श्रीराम भक्ति का विधान करनेवाले ।
- ध्याता: – रात- दिन श्रीराम का ध्यान करनेवाले ।
- ध्येय: – मुनियों के द्वारा ध्येय ।
- लय: – अपनेमें अखिल चराचर को विलीन करनेवाले ।
- साक्षी: – सर्वद्रष्टा ।
- चेता: – सर्वज्ञ ।
- चैतन्य विग्रह: – चिन्मय शरीर वाले ।
- ज्ञानद: – ब्रह्मज्ञान के दाता ।
- प्राणद: -प्राण (बल) प्रदान करनेवाले ।
- प्राण: – जिससे प्राणी प्राणवाले हैं , अर्थात् प्राणस्वरूप ।
- जगत्प्राण: – जगत् के प्राण ।
- समीरण: – वायुरूप ।
- विभीषणप्रिय: – विभीषण के प्यारे ।
- शूर: – शत्रुओं को रण में सुलानेवाले ।
- पिप्पलाश्रय सिद्धिद: – ( आनन्दरामायण के मनोहरकाण्डके अनुसार ) अश्वत्थ को गृह मानकर साधना करनेवाले साधक को सारी सिद्धियों प्रदान करनेवाले ।
- सिद्ध: -सिद्ध स्वरूप ।
- सिद्धाश्रय: – सिद्धों के आश्रय ।
- काल: – यमरूप ।
- महोक्ष: – महान् धर्मरूपी बैलवाले
- कालाजान्तक: – काल से उत्पन्न जरा- व्याधि आदि दोषों का अन्त करनेवाले ।
- लङ्केशनिधनस्थायी: – रावण के विनाश के लिये स्थिरचित्त ।
- लङ्कादाहक: – लंका को जलानेवाले ।
- ईश्वर: – त्रिलोकी में परम ऐश्वर्यशाली ।
- चन्द्रसूर्यग्निनेत्र: – चंद्र,सूर्य और अग्निरूप तीन नेत्रोंवाले शिवस्वरूप ।
- कालाग्नि:- मृत्युकारी अग्निरूप ।
- प्रलयान्तक: – प्रलय का अंत करनेवाले अर्थात् भक्तों को जन्म-मृत्यु से रहित करनेवाले।
- कपिल: – काले- पीले वर्ण के रोम से युक्त ।
- कपिश: – श्याम-पीतवर्ण मिश्रित कपिशवर्ण ।
- पुण्य राशि: – पुण्यकी राशि ।
- द्वादशराशिग: – द्वादश राशियों के ज्ञाता अर्थात् ज्योतिषशास्त्र के जाननेवाले ।
- सर्वाश्रय: – सबके आश्रय स्थान ।
- अप्रमेयात्मा: – अनुपम शरीरवाले ।
- रेवत्यादिनिवारक: – रेवती-पूतना आदि ग्रह- दोषों का निवारण करनेवाले ।
- लक्ष्मण प्राणदाता: – संजीवनी द्वारा लक्ष्मणा जी को प्राण देनेवाले ।
- सीताजीवन हेतुक: – श्री जानकी जी को श्रीराम का संदेश देकर जीवन प्रदान करनेवाले ।
- रामध्येय: – श्री राम जिनका ध्यान-स्मरण करते हैं ।
- हृषिकेश: – इन्द्रियों के स्वामी ।
- विष्णुभक्त: – विष्णुके भक्त ।
- जटी: – जटावाले ।
- बली – बलशाली ।
- देवारिदर्पहा: – देवशत्रुओंके दर्प को नष्ट करनेवाले ।
- होता – भगवद्भक्तिका अनुष्ठान करनेवाले ।
- धाता: – जगत् को धारण करनेवाले ।
- कर्ता: – जगत् को बनानेवाले ।
- जगत्प्रभु: – जगत् के स्वामी ।
- नगरग्रामपाल: – नगर और ग्रामवासियों की रक्षा करने वाले ।
- शुद्ध: – शुद्धस्वरूप ।
- बुद्ध: – ज्ञान स्वरूप ।
- निरत्रप: – सलज्ज ।
- निरञ्जन: -अज्ञान या माया से रहित ।
- निर्विकल्प: – विकल्परहित ।
- गुणातीत: – सत्त्वादि गुणों से रहित ।
- भयङ्कर: – दुष्टों के लिये विकराल स्वरूपवाले ।
- हनुमान् – श्री राम के अनुचर ।
- दुराराध्य: – अभक्तों के लिये कष्ट से आराधनीय ।
- तपःसाध्य: – तप के द्वारा साध्य ।
- महेश्वर: – महान् ईश्वर ।
- जानकीधनशोकोत्थतापहर्ता: – जानकीधन अर्थात् श्रीराम के शोक से उत्पन्न संताप को हरने वाले ।
- परात्पर: – जो अव्यक्त से भी परे हैं ।
- वाङ्मय: – वेदशास्त्र- सरस्वतीस्वरूप ।
- सदसद्रूप: – सत् और असत् स्वरूप ।
- कारणम्: – संसार के अभिन्न निमित्तोपादन कारण ।
- प्रकृतेः पर: – जो त्रिगुणात्मिका प्रकृति से परे हैं ।
- भाग्यद: – कर्मजन्य शुभाशुभ फलों को देनेवाले ।
- निर्मल: – मल अर्थात् दोष से रहित ।
- नेता: – मार्गदर्शक ।
- पुच्छलङ्काविदाहक: – पुच्छ से लंकाको जलानेवाले ।
- पुच्छबद्धयातुधान: -पुच्छ से राक्षसों को बाँधनेवाले ।
- यातुधानरिपुप्रिय: – राक्षसों के शत्रु श्रीराम के प्रिय ।
- छायापहारी: – छायानाम की राक्षसीको मारनेवाले।
- भूतेश:- भूतों के स्वामी ।
- लोकेश: – लोकों के स्वामी ।
- सद्गतिप्रद: – संतों को सद्गति प्रदान करनेवाले ।
- प्लवङ्गमेश्वर: – वानरों के स्वामी ।
- क्रोध: – शत्रुओं के लिए क्रोधस्वरूप ।
- क्रोध संरक्तलोचन: – युद्धकाल में क्रोध से लाल नेत्रवाले ।
- सौम्य:- सौम्यस्वरूप ।
- गुरु: – अज्ञान दूर करके परमात्मदर्शन करानेवाले ।
- काव्यकर्ता: – कव्य-रचना करनेवाले।
- भक्तानां वरप्रद: – भक्तों को अभीष्ट वर प्रदान करनेवाले ।
- भक्तानुकम्पी: – भक्तों पर अनुकम्पा करनेवाले ।
- विश्वेश: – विश्वके संचालक ।
- पुरुहूत: – बहुत बार लोग जिनको पुकारते हैं ।
- पुरन्दर: – शत्रुके नगरों को ध्वस्त करनेवाले ।
- क्रोधहर्ता: – क्रोध को हरनेवाले ।
- तमोहर्ता: – अज्ञानान्धकार को दूर करनेवाले ।
- भक्ताभयवरप्रद: – भक्तों को अभय वर प्रदान करनेवाले ।
- अग्नि: – अग्निस्वरूप ।
- विभावसु: – दिव्य तेज:स्वरूप्।
- भास्वान्: – प्रकाशयुक्त ।
- यम: – संयमस्वरूप ।
- निर्ॠति: – नैर्ऋतगणके स्वामी ।
- वरुण: – जल के देवता वरुणस्वरूप।
- वायुगतिमान् : – वायुके समान गतिशील ।
- वायु: – वायुपुत्र होने के कारण वायुस्वरूप ।
- कौबेर ईश्वर: – कुबेर-सम्बन्धी धन के मालिक ।
- रवि: – सुर्यस्वरूप ।
- चन्द्र: – जगत् को आह्लादित करनेवाले चंद्रस्वरूप ।
- कुज: – मंगल ग्रहस्वरूप ।
- सौम्य: – बुधग्रहस्वरूप ।
- गुरु: – बृहस्पतिग्रहस्वरूप ।
- काव्य: – शुक्रग्रहस्वरूप ।
- शनैश्चर: – शनिग्रहस्वरूप ।
- राहु: – राहुग्रहस्वरूप ।
- केतु: – केतुग्रहस्वरूप ।
- मरुत्: – वायुस्वरूप ।
- होता: – हवन करनेवाले ।
- दाता: – भक्तों के भव-बंधन को काटनेवाले ।
- हर्ता: – भक्तोंकी ममताको हरनेवाले ।
- समीरज: – पवन देवता के पुत्र ।
- मशकीकृतदेवारि: – देवताओं के शत्रुओं को मच्छरके समान समझनेवाले ।
- दैत्यारि: – दैत्यों के शत्रु ।
- मधुसूदन: – भक्तोंके अशुभ कर्मोंका विनाश करनेवाले ।
- काम: – श्रीराम भक्तिकी कामना करनेवाले ।
- कपि: – जल से पृथ्वीकी रक्षा करनेवाले ।
- कामपाल: – वीर्यरक्षक अर्थात् ब्रह्मचर्यका पालन करनेवाले ।
- कपिल: – कपिलमुनिस्वरूप ।
- विश्वजीवन: – विश्व के जीवन ।
- भागीरथीपदाम्भोज: – जिनके चरणकमल भागीरथीके समान पवित्र करनेवाले हैं ।
- सेतुबन्धविशारद: – सेतु बांधने में चतुर ।
- स्वाहा: – स्वाहास्वरूप ।
- स्वधा: – स्वधा स्वरूप
- हवि: – हवि:स्वरूप ।
- कव्यम्: – पितरों को दिये जाने वाले अन्नादि रूप ।
- हव्यवाहप्रकाशक: – देवताओंके लिये हव्य वहन करने वाले अग्नि के समान प्रकाशक ।
- स्वप्रकाश: – स्वयं प्रकाशस्वरूप ।
- महावीर: – बड़े बलवान ।
- लघु: – लघु रूप धारण करनेवाले ।
- ऊर्जित:विक्रम: – सुदृढ़ा पराक्रमवाले ।
- उड्डीनोड्डीनगतिमान्: – आकाशमें उड़नेवालों में तीव्रगतिशाली ।
- सद्गति: – सम्यक रीतिसे चलनेवाले।
- पुरुषोत्तम्: – पुरुषों में श्रेष्ठ ।
- जगदात्मा: – जगत् – सवरूप ।
- जगद्योनि: – जगत् के कारण ।
- जगदन्त: – जगत् का अन्त करनेवाले ।
- अनन्तक: – जिनके अनन्त गुण हैं ।
- विपाप्मा: – पापरहित ।
- निष्कलङ्क: – कलङ्करहित ।
- महान्: – महत्तत्त्वस्वरूप ।
- महदहङ्कृति: – महां अहंकारतत्वस्वरूप ।
- खं: – आकाशतत्वस्वरूप ।
- वायु: – वायुतत्वस्वरूप ।
- पृथ्वी: – पृथ्वीतत्वस्वरूप ।
- आप: – जलतत्वस्वरूप ।
- वह्नि: – अग्नितत्वस्वरूप ।
- दिक्पाल: – दिशाओंका पालन करनेवाले ।
- क्षेत्रज्ञ: – क्षेत्रके ज्ञाता ।
- क्षेत्रहर्ता: – क्षेत्र का हरण करनेवाले ।
- पल्वलीकृतसागर: – सागर को लघु जलाशयरूप मानकर सरलतासे पार करनेवाले ।
- हिरण्मय: – स्वर्ण के समान कांतिवाले ।
- पुराण: – पुराणपुरुष ।
- खेचर: – आकाश में विचरण करनेवाले।
- भूचर: – पृथ्वीपर घूमनेवाले ।
- अमर: – न मरनेवाले ।
- हिरण्यगर्भ: – विश्वको उत्पन्न करनेवाले ब्रह्मास्वरूप ।
- सूत्रात्मा: – सर्वव्यापक ।
- विशाम्पति: राजराज: – मनुष्योंका पालन करनेवाले राजाधिराज ।
- वेदान्तवेद्य: – वेदान्त शास्त्रद्वारा जानने योग्य ।
- उद्गीथ: – ॐकारस्वरूप ।
- वेदवेदाङ्ग पारग: – चारों वेदों और छहों वेदाङ्गों में पारंगत ।
- प्रतिग्राम स्थिति: – प्रत्येक गाँव में स्थित रहनेवाले ।
- सद्यः स्फूर्तिदाता: – तत्काल स्फूर्ति प्रदान करनेवाले ।
- गुणाकार: – गुणोंकी खान ।
- नक्षत्रमाली: – सत्ताईस नक्षत्रोंकी मालावाले ।
- भूतात्मा: – प्राणियों की आत्मा ।
- सुरभि: – कामधेनुस्वरूप ।
- कल्पपादप: – भक्तों का मनोरथ पूर्ण करनेवाले कल्पवृक्षस्वरूप ।
- चिन्तामणि: – चिंतामणिस्वरूप ।
- गुणनिधि: – गुणोंकी खानि ।
- प्रजाधार: – प्रजा के आधारभूत ।
- अनुत्तम: – जिनसे उत्तम कोई नहीं है अर्थात् सर्वश्रेष्ठ ।
- पुण्यश्लोक: – पुण्यकीर्तिवाले ।
- पुराराति: – पुरनामक राक्षस के शत्रु शिवस्वरूप ।
- ज्योतिष्मान्: – ज्योति:स्वरूप ।
- शर्वरीपति: – चन्द्रस्वरूप ।
- किल्किलाराव सन्त्रस्त भूत प्रेत पिशाच: – किल-किल शब्दसे भूत-प्रेत- पिशाचादिको संत्रस्त करनेवाले ।
- ऋणत्रयहर: – भक्तोंके तीनों ऋणों को हरनेवाले ।
- सूक्ष्म: – सूक्ष्मस्वरूप ।
- स्थूल: – स्थूलस्वरूप ।
- सर्वगति: – सर्वत्र गतिवाले ।
- पुमान्: – पुरुषार्थी ।
- अपस्मारहर: – अपस्मार (मिरगीरोग ) को हरने वाले ।
- स्मर्ता: – भगवान् का स्मरण करनेवाले ।
- श्रुति: – वेदस्वरूप ।
- गाथा: – स्तोत्रस्वरूप ।
- स्मृति: – स्मृतिस्वरूप ।
- मनु: – मंत्रस्वरूप ।
- स्वर्गद्वारम्: – स्वर्ग के द्वारस्वरूप ।
- प्रजाद्वार: – प्रजा अर्थात् संतति प्रदान करनेवाले ।
- मोक्षद्वार: – मोक्ष प्रदान करनेवाले ।
- यतीश्वर: – सन्यम करनेवालों में अतिश्रेष्ठ ।
- नादरूप: – नाद-ब्रह्मस्वरूप ।
- परम: – मोक्षस्वरूप।
- परब्रह्म: – परब्रह्मस्वरूप
- ब्रह्म: – सर्वव्यापक ।
- ब्रह्मपुरातन: – आदिकारणरूप पुरातन ब्रह्म ।
- एक: – अद्वितीय ।
- अनेक: – अनेकरूप ।
- जन: – भक्तस्वरूप ।
- शुक्ल: – शुक्लस्वरूप ।
- स्वयं ज्योति: – स्वयं प्रकाशस्वरूप ।
- अनाकुल: – व्याकुल न होनेवाले ।
- ज्योति: – प्रकाशस्वरूप ।
- अनादिर्ज्योति: – सब प्रकारकी ज्योतिके मूलभूत अनादि ज्योति ।
- सात्त्विक: – सात्त्विक रूपमें पालनकर्ता ।
- राजस: – राजसरूप में उत्पन्न करनेवाले ।
- तम: – तमोरूप में संहारकर्ता ।
- तमोहर्ता: – तमोगुणका नाश करनेवाले ।
- निरालम्ब: – आश्रयरहित ।
- निराकार: – आकाररहित ।
- गुणाकार: – गुणोंकी खानि
- गुणाश्रय: – तीनों गुणोंके आश्रय ।
- गुणमय: – सद्गुणोंसे सम्पन्न ।
- बृहत्कर्मा: – महान् कार्य करनेवाले ।
- बृहद्यशा: – विस्तीर्ण कीर्तिवाले ।
- बृहद्धनु: – बड़ी ठुड्डीवाले ।
- बृहत्पाद: – लम्बी टाँगोंवाले ।
- बृहन्मूर्धा: – बड़े मस्तकवाले ।
- बृहत्स्वन: – बड़ा शब्द करनेवाले ।
- बृहत्कर्ण: – बड़े कानवाले ।
- बृहन्नास: – लम्बी नासिकावाले ।
- बृहद्बाहु: – लम्बी भुजावाले ।
- बृहत्तनु: -विशाल देहधारी ।
- बृहज्जानु: – बड़े घुटनोंवाले ।
- बृहत्कार्य: – महान् कार्य करनेवाले ।
- बृहत्पुच्छ: – लम्बी पूँछवाले ।
- बृहत्कर: – लम्बे हाथोंवाले ।
- बृहद्गति: – तीव्र गतिवाले ।
- बृहत्सेव्य: – महापुरुषों के द्वारा सेव्य ।
- बृहल्लोक फलप्रद: – सम्पूर्ण लोकरूप फल देनेवाले ।
- बृहच्छक्ति: – महान् शक्तिशाली ।
- बृहद्वाञ्छाफलद: – बड़ी-बड़ी इच्छाओं को पूर्ण करनेवाले ।
- बृहदीश्वर: – महान् सामर्थ्यवान ।
- बृहल्लोकनुत: – असंख्य लोगोंके द्वारा नमस्कृत ।
- द्रष्टा: – शुभाशुभ कर्मों को देखनेवाले ।
- विद्यादाता: – विद्या प्रदान करनेवाले ।
- जगद्गुरु: – जगत् को सन्मार्ग में लगानेवाले गुरु ।
- देवाचार्य: – देवताओं के आचार्य ।
- सत्यवादी: – सत्य बोलनेवाले ।
- ब्रह्मवादी: – ब्रह्म (परमात्म ) – विषयक विवेचन करनेवाले ।
- कलाधर: – कलाओं के ज्ञाता ।
- सप्तपातालगामी: – सातों पातालोंमें विचरण करनेवाले ।
- मलयाचल संश्रय: – मलयगिरिपर निवास करनेवाले ।
- उत्तराशास्थित: – उत्तर दिशा में स्थित ।
- श्रीद: – शोभा ( ऐश्वर्य ) प्रदान करनेवाले ।
- दिव्यौषधिवश: – दिव्य औषधियों को वशीभूत करनेवाले ।
- खग: – नभोमण्डल में विचरण करनेवाले ।
- शाखामृग: – शाखाओं पर कूदनेवाले ।
- कपीन्द्र: – वानरों के अधिपति ।
- पुराण श्रुतिचञ्चुर: – श्रुति और पुराण की विशेष जानकारी रखनेवाले ।
- चतुर ब्राह्मण: – निपुण ब्राह्मणस्वरूप ।
- योगी: – योगसिद्ध ।
- योगगम्य: – योगाभ्यास के द्वारा प्राप्त होनेवाले ।
- परावर: – विश्व के आदि और अंतस्वरूप ।
- अनादिनिधन: – आदि-अंत से रहित ।
- व्यास: – वेदों का विस्तार करनेवाले ।
- वैकुण्ठ: – माया के प्रभाव से रहित
- पृथिवीपति: – भूलोक के रक्षक ।
- अपराजित: – शत्रुओं के द्वारा अजेय ।
- जिताराति: – शत्रुओं को जीतनेवाले ।
- सदानन्द: – सदा आनंदित रहनेवाले ।
- दयायुत: – दयालु ।
- गोपाल: – पृथ्वीका पालन करनेवाले ।
- गोपति: – इन्द्रियों के स्वामी ।
- गोप्ता: – भक्तों के रक्षक ।
- कलिकाल पराशर: – कलिकाल के पराशर अर्थात् कथा वाचकों के उत्पादक ।
- मनोवेगी: – मन के समान वेगवाले ।
- सदायोगी: – सदा योगयुक्त रहनेवाले ।
- संसार भय नाशन: – भवभय का नाश करनेवाले ।
- तत्त्वदाता: – तत्वज्ञान के दाता ।
- तत्त्वज्ञ: – तत्वज्ञानी ।
- तत्त्वम्: – ब्रह्मस्वरूप ।
- तत्त्व प्रकाश: – तत्व का प्रकाश करनेवाले ।
- शुद्ध: – सबको पवित्र करनेवाले ।
- बुद्ध: – ज्ञानवान् ।
- नित्यमुक्त: – सदा मुक्तस्वरूप ।
- भक्तराज: – भगवद्भक्तों में देदीप्यमान ।
- जयद्रथ: – आक्रमण में जय प्राप्त करनेवाले ।
- प्रलय: – शत्रुओं के लिये प्रलयंकर ।
- अमितमाय: – अनंत माया जाननेवाले ।
- मायातीत: – सर्वथा मायाजाल से रहित ।
- विमत्सर: – ईर्ष्या से रहित्।
- माया भर्जितरक्ष: – अपनी माया से राक्षसों को भून डालनेवाले ।
- मायानिर्मित विष्टप: – माया से भुवनों की सृष्टि करनेवाले ।
- मायाश्रय: – माया का आश्रय लेनेवाले ।
- निर्लेप: – निरासक्त रहनेवाले ।
- मायानिर्वर्तक: – माया शक्ति द्वारा कार्य सम्पन्न करनेवाले ।
- सुखम्: – सुखस्वरूप।
- सुखी: – सदा सुख से रहनेवाले ।
- सुखप्रद: – सुख प्रदान करनेवाले ।
- नाग: – नागस्वरूप ।
- महेशकृतसंस्तव: – शंकरजी के द्वारा स्तुत ।
- महेश्वर: – महान् ऐश्वर्यशाली ।
- सत्यसन्ध: – सत्यवादी ।
- शरभ: – शरभ नामक पशु के समान महान् बलशाली ।
- कलिपावन: – कलियुग को पवित्र करनेवाले ।
- सहस्रकन्धर बलविध्वंसन विचक्षण: – हजारों सिरवाले रावण के बल को विध्वंस करने में चतुर ।
- सहस्रबाहु: – हजारों भुजाबाले ।
- सहज: – सहज स्थितिस्वरूप।
- द्विबाहु: – दो बाहुवाले ।
- द्विभुज: – दो भुजाओंवाले ।
- अमर: – अविनाशी।
- चतुर्भुज: – चार भुजावाले ।
- दशभुज: – दस भुजावाले ।
- हयग्रीव: – अश्व के समान गर्दंवाले ।
- खगानन: – गरुड़के समान मुखवाले ।
- कपिवक्त्र: – कपि-सदृश मुखवाले ।
- कपिपति: – वानरों की रक्षा करनेवाले ।
- नरसिंह: – नरसिन्ह के समान विकराल रूप धारण करनेवाले ।
- महाद्युति: – अत्यंत तेजस्वी ।
- भीषण: – युद्ध में भयंकररूप ।
- भावग: – भगवद्भाव को प्राप्त।
- वन्द्य: – वंदना करने योग्य ।
- वराह: – वराह – मुखवाले ।
- वायुरूपधृक्: – वायु का रूप धारण करनेवाले ।
- लक्ष्मण प्राणदाता: – लक्ष्मण को ( संजीवनी लाकर ) जिलानेवाले ।
- पराजित दशानन: – दशानन (रावण ) – को पराजित करनेवाले ।
- पारिजात निवासी: – पारिजात वृक्ष के नीचे निवास करनेवाले ।
- वटु: – ब्रह्मचारीस्वरूप
- वचन कोविद: – बोलने में अति चतुर ।
- सुरसास्यविनिर्मुक्त: – सुरसा के मुख से सुखपूर्वक निकल आनेवाले ।
- सिंहिका प्राणहारक: – सिंहि का राक्षसी का प्राण हरनेवाले ।
- लङ्कालङ्कारविध्वंसी: – लंका की शोभा को नष्ट करनेवाले ।
- वृषदंशकरूपधृक्: – वृषदंशक अर्थात् विडाल का रूप धारण करनेवाले ।
- रात्रिसंचार कुशल: – रात में घूमने में चतुर ।
- रात्रिंचरगृहाग्निद: – राक्षसों के घरों में आग लगानेवाले ।
- किङ्करान्तकर: – रावण के सेवकों को मार डालनेवाले ।
- जम्बुमालिहक्ता: – जम्बुमाली राक्षस को मारनेवाले ।
- उग्ररूपधृक्: – उग्ररूप धारण करनेवाले ।
- आकाशचारी: – आकाश में विचरण करनेवाले ।
- हरिग: – प्रभु को प्राप्त करनेवाले ।
- मेघनादरणोत्सुक: – मेघनाद के साथ युद्ध करने के लिये उत्कण्ठित ।
- मेघगम्भीरनिनदो: – बादल के समान गम्भीर शब्द करनेवाले ।
- महारावणकुलान्तक: - महारावण के कुल को नष्ट करनेवाले ।
- कालनेमिप्राणहारी: – कालनेमि राक्षस का प्राण हरनेवाले ।
- मकरीशापमोक्षद: – मकरी को शाप से मुक्त करनवाले ।
- रस: – रसस्वरूप ।
- रसज्ञ: – रस को जाननेवाले।
- सम्मान: – प्रभुका सम्यक् सम्मान करनेवाले ।
- रूपम् – रूप स्वरूप ।
- चक्षु: – चक्षुस्वरूप ।
- श्रुति: – श्रवणस्वरूप ।
- वच: – वाणीस्वरूप ।
- घ्राण: – नासिकास्वरूप ।
- गन्ध: – गंधरूप ।
- स्पर्शनम्: – स्पर्शरूप ।
- स्पर्श: – सम्पर्क- ज्ञानस्वरूप ।
- अहङ्कारमानग: – अहंकार के स्वरूप को प्राप्त होनेवाले ।
- नेतिनेतीतिगम्य: – नेति-नेति शब्दों द्वारा गम्य ।
- वैकुण्ठ भजन प्रिय: – भगवान् के भजन में प्रीति रखनेवाले ।
- गिरीश: – पर्वतों के ईश ।
- गिरिजाकान्त: – माता पार्वती के प्रिय शंकरस्वरूप ।
- दुर्वासा: – दुर्वासा मुनिस्वरूप ।
- कवि: – कविस्वरूप ।
- अङ्गिरा: – अङ्गिरा मुनिरूप ।
- भृगु: – भृगु मुनिस्वरूप ।
- वसिष्ठ: – वशिष्ठ्मुनिस्वरूप ।
- च्यवन: -च्यवन ऋषिस्वरूप ।
- नारद: – नारदमुनिस्वरूप ।
- तुम्बर: – तुम्बरु गंधर्वस्वरूप ।
- अमल: – दोषरहित ।
- विश्वक्षेत्र: – विश्वक्षेत्रस्वरूप।
- विश्वबीज: – विश्वबीज अर्थात् कारणस्वरूप ।
- विश्वनेत्र: – सर्वद्रष्टा ।
- विश्वप: – विश्वके पालक ।
- याजक: – यज्ञकर्मा ।
- यजमान: – प्रधान होतारूप ।
- पावक: – अग्निरूप ।
- पितर: – जगत् के माता पिता ।
- श्रद्धा: – श्रद्धास्वरूप ।
- बुद्धि: – बुद्धिस्वरूप ।
- क्षमा: – क्षमास्वरूप ।
- तन्द्रा: – तंद्रारूप ।
- मन्त्र: – मंत्रस्वरूप ।
- मन्त्रयिता : – शुभ मंत्र देनेवाले ।
- सुर: – देवस्वरूप ।
- राजेन्द्र: – राजाओं में श्रेष्ठ ।
- भूपती: – पृथ्वी के पालक ।
- रुण्डमाली: – रुण्डों के मालावाले ।
- संसार सारथि: – भक्तों को भवसिन्धु पार करने में सहायक ।
- नित्य सम्पूर्ण काम: – सदा सभी कामनाओं से तृप्त ।
- भक्त कामधुक्: – भक्तों की कामनाओं के दोग्धा ।
- उत्तम: – श्रेष्ठ ।
- गणप: – वानरगणों के पालक ।
- केशव: – घुँघराले केशवाले ।
- भ्राता: – भ्रातृस्वरूप ।
- पिता: – पितारूप ।
- माता: – वात्सल्यमयी मातारूप ।
- मारुति: – पवनदेवता के पुत्र ।
- सहस्रमूर्द्धा: – हजारों सिरवाले ।
- अनेकास्य: – अनेक मुखवाले ।
- सहस्राक्ष: – सहस्त्रों नेत्रवाले ।
- सहस्रपात्: – सहस्त्रों पैरवाले ।
- कामजित्: – कामदेव को जीतनेवाले ।
- कामदहन: – काम को जलानेवाले ।
- काम: – सौन्दर्यशाली ।
- कामफलप्रद: – कामनाओं को पूर्ण करनेवाले ।
- मुद्रापहारी: – श्रीराम मुद्रिका को ले जानेवाले ।
- रक्षोघ्न: – राक्षसों का नाशकरनेवाले ।
- क्षिति भारहा: – पृथ्वी का भार उतारनेवाले ।
- बल: – शत्रु- सन्हारक ।
- नखदंष्ट्रायुध: – नख और दंष्ट्रारूप शस्त्र धारण करनेवाले ।
- विष्णु: – व्यापकस्वरूप ।
- भक्ताभय वरप्रद: – भक्त को अभय वर प्रदान करनेवाले ।
- दर्पहा: – दर्प का नाश करनेवाले ।
- दर्पद: – उत्साह प्रदान करनेवाले ।
- दंष्ट्रा: शत मूर्ति: – सौ दंष्ट्राओं से युक्त मुर्तिवाले ।
- अमूर्तिमान्:- मूर्तिरहित अर्थात् निराकारस्वरूप ।
- महानिधि: – सद्गुणों के महान् भण्डार ।
- महाभाग: – बड़े भाग्यशाली ।
- महाभर्ग: – महातेजस्वी ।
- महार्द्धिद: – महान् ऋषि प्रदान करनेवाले ।
- महाकार: – बड़े आकारवाले ।
- महायोगी: – महान् योगी ।
- महातेजा: – बड़े तेजस्वी ।
- महाद्युति: -अत्यंत शोभावाले ।
- महासन: – अत्यंत स्थिर आसनवाले ।
- महानाद: – बड़ी गर्जना करनेवाले ।
- महामन्त्र: – उच्चकोटि के मंत्रवाले ।
- महामति: – महान् बुद्धिवाले ।
- महागम: – महान् गतिवाले ।
- महोदार: – बड़े उदार ।
- महादेवात्मक: – महादेवस्वरूप ।
- विभु: – सर्वव्यापक ।
- रौद्रकर्मा: – भयामक कर्म करनेवाले ।
- क्रूरकर्मा: – कठोर कर्म करनेवाले ।
- रत्नाभ: – रत्न के समान नाभिवाले ।
- कृतागम: – शास्त्रकी रचना करनेवाले ।
- अम्भोधि लङ्घन: – समुद्र लाँघनेवाले ।
- सिंह: – सिंहस्वरूप ।
- सत्यधर्म प्रमोदन: – सत्यधर्म का पालन करनेमें प्रसन्न ।
- जितामित्रो: – शत्रुओं को जीतनेवाले ।
- जय: – जयस्वरूप ।
- सोम: – सोमस्वरूप ।
- विजयी: – पराक्रमी ।
- वायुनन्दन: – पवनदेवता को आनंदित करनेवाले ।
- जीवदाता: – प्राणदान करनेवाले ।
- सहस्रांशु: – सूर्यस्वरूप ।
- मुकुन्द: – मुक्तिप्रदान करनेवाले ।
- भूरिदक्षिण: – विपुल दक्षिणा प्रदान करनेवाले ।
- सिद्धार्थ: – सदासिद्ध प्रयोगवाले ।
- सिद्धिद: – सिद्धि देनेवाले ।
- सिद्ध सङ्कल्प: – सिद्ध संकल्पवाले ।
- सिद्धि हेतुक: – सिद्धियों के कारण ।
- सप्तपातालचरण: – सप्तपाताल में संचरण करनेवाले ।
- सप्तर्षिगणवन्दित: – सप्तऋषियों द्वारा वंदित ।
- सप्ताब्धिलङ्घन: – सातों समुद्रों को लाँघनेवाले ।
- वीर: – संदेश पहुँचानेवालों में वीर ।
- सप्तद्वीपोरुमण्डल: – सप्तद्वीप के विशाल मण्डल में विचरण करनेवाले ।
- सप्ताङ्गराज्यसुखद: – सप्ताङ्ग़युक्त राज्य के लिये सुखद ।
- सप्तमातृनिषेवित: – सात माताओं द्वारा सेवित ।
- सप्तस्वर्लोकमुकुट: – सात स्वर्गलोकों के मुकुटमणि ।
- सप्तहोता: – सामवेद के सात मंत्रों से हवन करनेवाले ।
- स्वाराश्रय: – स्वरों का आश्रय लेनेवाले अर्थात् संगीत- शास्त्रों में प्रवीण ।
- सप्तच्छन्दोनिधि: – सात वैदिक छंदों के आश्रय ।
- सप्तच्छन्द: – सात छन्दस्वरूप ।
- सप्तजनाश्रय: – सप्तजनों के आश्रयस्वरूप ।
- सप्तसामोपगीत: – जिनका सामवेद की सात स्वरोंद्वारा गान किया जाता है ।
- सप्तपाताल संश्रय: – सप्तपाताल के आश्रय ।
- मेधाद: – मेधा को प्रदान करनेवाले ।
- कीर्तिद: – यश देनेवाले ।
- शोकहारी: – शोक हरण करनेवाले ।
- दौर्भाग्यनाशन: – दुर्भाग्य का नाश करनेवाले ।
- सर्वरक्षाकर: -चारों ओर से रक्षा करनेवाले ।
- गर्भदोषहा: – गर्भ-दोष को दूर करनेवाले ।
- पुत्रपौत्रद: – पुत्र और पौत्र प्रदान करनेवाले ।
- प्रतिवादिमुखस्तम्भ: – प्रतिवादी के मुख को बंद करनेवाले अर्थात् श्रेष्ठ वक्ता ।
- रुष्टचित्तप्रसादत: – रूष्टचित्तवालों को प्रसन्न करनेवाले ।
- पराभिचारशमन: – शत्रु के मारण- मोहन आदि अभिचारों को शमन करनेवाले ।
- दुःखहा: – दु:खों का नाश करनेवाले ।
- बन्धमोक्षद:- बंधनसे मुक्त करनेवाले ।
- नवद्वारापुराधार : – नवद्वारपुर (शरीर ) के आधार ।
- नवद्वारनिकेतन: – नवद्वारवाले शरीररूपी घर में रहनेवाले आत्म-स्वरूप ।
- नरनारायण स्तुत्य: – नर और नारायण के द्वारा स्तुत्य ।
- नवनाथ महेश्वर: – नवनाथों के महेश्वर ।
- मेखली: – मेखला धारण करनेवाले ।
- कवची: – कवच धारण करनेवाले ।
- खंगी: – खड्ग धारण करनेवाले ।
- भ्राजिष्णु: – देदीप्यमान ।
- जिष्णुसारथि: – अर्जुन के सारथि अर्थात् ध्वजा में निवास करनेवाले ।
- बहुयोजनविस्तीर्णपुच्छ: – अनेक योजन लम्बी पूँछवाले ।
- पुच्छहतासुर: – पूँछसे राक्षसों को मारनेवाले ।
- दुष्टग्रहनिहन्ता: – दुष्टग्रहों के नाशक ।
- पिशाचग्रहघातक: – पिशाचग्रह के हन्ता ।
- बालग्रह विनाशी: – बालग्रहों का विनाश करनेवाले ।
- धर्मनेता: – धर्म के नेता ।
- कृपाकार: – कृपा करनेवाले ।
- उग्रकृत्य: – उग्र कृत्यकर्ता ।
- उग्रवेग: – भयंकर वेगवान्।
- उग्रनेत्र: – उग्र नेत्रवाले ।
- शतक्रतु: – सौ यज्ञ करनेवाले इंद्रस्वरूप ।
- शतमन्युनुत: – इन्द्रद्वारा स्तुत ।
- स्तुत्य: – स्तुति करने योग्य ।
- स्तुति: – स्तुतिस्वरूप ।
- स्तोता: – स्तुति करनेवाले ।
- महाबल: – अत्यंत बलशाली।
- समग्रगुणशाली: – सारे- गुणों से युक्त ।
- व्यग्र: – सदा उद्यत ।
- रक्षोविनाशक: – असुरों का विनाश करनेवाले ।
- रक्षोऽग्निदाह: – राक्षसों को अग्नि में जलादेनेवाले ।
- ब्रह्मेश: – ब्रह्मा के ऊपर शासन करनेवाले ।
- श्रीधर: – ऐश्वर्य धारण करनेवाले ।
- भक्तवत्सल: – भक्तों पर कृपा करनेवाले ।
- मेघनाद: – मेघ के समान गर्जनेवाले ।
- मेघरूप: – मेघ के समान रूपवाले ।
- मेघवृष्टिनिवारक: – मेघ की वृष्टि को रोकनेवाले ।
- मेघजीवनहेतु: – मेघों के जीवन के हेतु समुद्रस्वरूप ।
- मेघश्याम: – मेघ के समान श्याम वर्णवाले ।
- परात्मक: – परमात्मस्वरूप ।
- समीरतनय: – वायु- देवता के पुत्र ।
- योद्धा: – शत्रुओं के साथ लड़नेवाले ।
- नृत्यविद्याविशारद: – नृत्यकला में विशारद ।
- अमोघ: – कभी व्यर्थ न होनेवाले ।
- अमोघदृष्टि: – जिनकी कृपादृष्टि कभी व्यर्थ नहीं जाती ।
- इष्टद: – मनोवाञ्छित वस्तु देनेवाले ।
- अरिष्टनाशन: – विघ्ननाशक ।
- अर्थ: – अर्थस्वरूप ।
- अनर्थापहारी: – अनर्थ को दूर करनेवाले ।
- समर्थ: – सर्वथा सामर्थ्यवान् ।
- रामसेवक: – श्रीराम के सेवक ।
- अर्थिवन्द्य: – अर्थियों के द्वारा वन्दनीय ।
- असुराराति: – असुरों के शत्रु।
- पुण्डरीकाक्ष: – श्वेतकमल के समान नेत्रवाले अर्थात् विष्णुस्वरूप ।
- आत्मभू: – स्वेच्छासे प्रकट होनेवाले ।
- सङ्कर्षण: – शत्रुओं को कर्षण करनेवाले बलदेवस्वरूप ।
- विशुद्धात्म: – परम पवित्रस्वरूप ।
- विद्यारात्रि: – विद्या की राशि – पूर्ण विद्वान ।
- सुरेश्वर: – देवताओं के स्वामी ।
- अचलोद्धारको: – अचलों (पर्वतों ) – का उद्धार करनेवाले ।
- नित्य: – नित्य विद्यमान ।
- सेतुकृत्: – सेतु बनानेवाले ।
- रामसारथि: – श्रीराम के वाहन ।
- आनन्द: – आनंद प्रदान करनेवाले ।
- परमानन्द: – परमानन्दास्वरूप ।
- मत्स्य: – मत्स्यस्वरूप ।
- कूर्म: – कूर्मस्वरूप ।
- निराश्रय: – आश्रयरहित ।
- वाराह: – वाराहस्वरूप ।
- नारसिंह: – नृसिन्हस्वरूप ।
- वामन: – वामनस्वरूप ।
- जमदग्निज: – परशुरामस्वरूप ।
- राम: – श्रीरामस्वरूप ।
- कृष्ण: – श्रीकृष्णस्वरूप ।
- शिव: – शिवास्वरूप ।
- बुद्ध: – बुद्धस्वरूप ।
- कल्कि: – कल्किस्वरूप
- रामाश्रय: – श्री राम के आश्रित ।
- हरि: – जगत् का दु:ख हरनेवाले ।
- नन्दी: – नन्दीस्वरूप ।
- भृंगी: – भृङ्गीस्वरूप ।
- चण्डी: – देवीस्वरूप ।
- गणेश: – गणपतिरूप ।
- गणसेवित: – वानरगणोंद्वारा सेवित ।
- कर्माध्यक्ष: – कर्मों के स्वामी ।
- सुराध्यक्ष: – देवताओं के अध्यक्ष ।
- विश्राम: – सब प्राणियों के विश्रामस्थल ।
- जगतीपति: – पृथ्वी का पालन करनेवाले ।
- जगन्नाथ: – जगत् के स्वामी ।
- कपीश: – वानरों के स्वामी ।
- सर्वावास: – सबके निवासस्थान ।
- सदाश्रय: – परमार्थपथ पर चलनेवालोंके आश्रय ।
- सुग्रीवादिस्तुत: – सुग्रीव आदि वानर जिनकी स्तुति करते हैं ।
- दान्त: – इन्द्रियों को वश में रखनेवाले ।
- सर्वकर्मा: – कृतकृत्य ।
- प्लवङ्गम: – वानररूप ।
- नखदारितरक्षा: – नखों के दवारा राक्षसों को विदीर्ण करनेवाले ।
- नखयुद्धविशारद: – नखयुद्ध में कुशल ।
- कुशल: – परम निपुण ।
- सुधन: – भक्तिरूपी ।
- शेष: – शेषनागस्वरूप।
- वासुकि: – वासुकिसर्पस्वरूप ।
- तक्षक: – तक्षक स्वरूप ।
- स्वर्णवर्ण: – सोने के समान दीप्तवर्णवाले ।
- बलाढ्य: – अति शक्तिशाली
- पुरुजेता: – बहुल विजयी ।
- अघनाशन: – पाप का नाश करनेवाले ।
- कैवल्यरूप: – मुक्तिस्वरूप ।
- कैवल्य: – अद्वयस्वरूप ।
- गरुड़: – गरुड़रूप ।
- पन्नगोरग: – लेटे-लेटे चलनेवाले तथा उरसे चलनेवाले अर्थात् हनुमान् जी सब प्रकार से चलनेवाले हैं ।
- किल्किल् रावहताराति: – किल – किल शब्द से शत्रुओं का नाश करनेवाले ।
- गर्वपर्वतभेदन: – गर्वरूप पर्वत को काट गिरानेवाले ।
- वज्राङ्ग: – वज्र शरीर ।
- वज्रदंष्ट्र: – वज्र के समान दाँतवाले
- भक्तवज्रनिवारक: – भक्तों के ऊपर गिरते हुए वज्र को रोकनेवाले ।
- नखायुध: – नख जिनके शस्त्र हैं ।
- मणिग्रीव: – कण्ठ में मणि धारण करनेवाले ।
- ज्वालामाली: – लंकादाह के समय अग्नि- ज्वालाकी माला धारण करनेवाले ।
- भास्कर: – सूर्य के समान प्रकाशस्वरूप ।
- प्रौढप्रताप: – प्रवृद्ध प्रतापवाले
- तपन: – सूर्यरूप।
- भक्तताप निवारक: – भक्तों का संताप दूर करनेवाले ।
- शरणम्: – शरणागत – रक्षक ।
- जीवनम्: – सबके जीवनस्वरूप ।
- भोक्ता: – सबको पालन करनेवाले ।
- नानाचेष्ट: – अनेक चेष्टावाले ।
- अचञ्चल: – स्वरूप में अटल रहनेवाले ।
- स्वस्तिमान्: – कल्याणस्वरूप ।
- स्वस्तिद: – कल्याण वितरण करनेवाले ।
- दुःखनाशन: – दु:खों के नाशक ।
- पवनात्मज: – पवन के पुत्र ।
- पावन: – पवित्र करनेवाले ।
- पवन: – वायुरूप ।
- कान्ता: – कांतिमान् ।
- भक्तागःसहन: – भक्तों के अपराधों को सहन करनेवाले ।
- बली: – बलवान्।
- मेघनादरिपु: – मेघनाद के शत्रु ।
- मेघनादसंहतराक्षस: – जिनकी मेघ – तुल्य गर्जना से राक्षस नष्ट हो जाते हैं ।
- क्षर: – प्रकृतिकार्यस्वरूप ।
- अक्षर: – अविनाशी आत्मस्वरूप ।
- विनीतात्मा: – विनम्र –स्वभाव ।
- वानरेश: – वानरों के ईश ।
- सताङ्गति: – संतों की गति ।
- श्रीकण्ठ: – शोभायमान कण्ठवाले ।
- शितिकण्ठ: – नीलकण्ठ भगवान् शंकरस्वरूप ।
- सहाय: – सहायता करनेवाले ।
- सहनायक: – अपने स्वामी श्रीराम के साथ रहनेवाले ।
- अस्थूल: – सूक्ष्मस्वरूप ।
- अनणु: – महान् ।
- भर्ग: – आभायुक्त ।
- दिव्य: – दिव्यरूपधारी ।
- संसृतिनाशन: – भवबंधन को मिटानेवाले ।
- अध्यात्म विद्यासार: – अध्यात्मविद्या के सार-तत्व ।
- अध्यात्म कुशल: – अध्यात्मविद्या में कुशल।
- सुधी: – सुंदर बुद्धिवाले ।
- अकल्मष: – निष्पाप ।
- सत्यहेतु: – सत्यस्वरूप परमात्मा की प्राप्ति करानेवले ।
- सत्यद: – सत्य प्रदान करनेवाले ।
- सत्यगोचर: – सत्य से दृष्टिगोचर होनेवाले ।
- सत्यगर्भ: – सत्य आशयवाले 825
- सत्य: – सत्यस्वरूप ।
- सत्यपराक्रम: – जिनका पराक्रम निष्फल नहीं होता ।
- अञ्जनाप्राणलिङ्ग: – माता अंजना के प्राणप्यारे पुत्र ।
- वायुवंशोद्भव: – वायुदेवता के वंशमें उत्पन्न ।
- शुभ: – कल्याणप्रद ।
- भद्ररूप: – मङ्गलमय स्वरूपवाले ।
- रुद्ररूप: – शंकरस्वरूप ।
- सुरूप: – सुन्दर स्वरूपवाले ।
- चित्ररूपधृक्: -चित्र- विचित्र रूप धारण करनेवाले ।
- मैनाकवन्दित: – मैंनाकपर्वतद्वारा वंदित ।
- सूक्ष्मदर्शन: – सूक्ष्मदृष्टि वाले ।
- विजय: – अर्जुनस्वरूप ।
- जय: – विष्णु के दवारपालस्वरूप ।
- क्रान्तदिङ्मण्डल: – दिशाओं के पार जानेवाले ।
- रुद्र: – आर्द्रानक्षत्ररूप ।
- प्रकटीकृतविक्रम: – अपने पराक्रम को प्रकट करनेवाले ।
- कम्बुकण्ठ: – शंख के समान सुंदर गर्दनवाले ।
- प्रसन्नात्मा: – सदा प्रसन्न चित्त रहनेवाले ।
- ह्रस्वनास: – छोटी नासिकावाले ।
- वृकोदर: – भेड़ियों के समान बड़े उदरवाले ।
- लम्बौष्ठ: – बड़े-बड़े ओठवाले ।
- कुण्डली: – कानों मे कुण्डल धारण करनेवाले ।
- चित्रमाली: – चित्र- विचित्र पुष्पों की माला पहननेवाले ।
- योगविदां वर: – योगवेत्तओं में श्रेष्ठ ।
- विपश्चितकवि – तत्वज्ञ कवि ।
- आनन्दविग्रह: – मूर्तिमान् आनंद ।
- अनल्पशासन: -सबके ऊपर शासन करनेवाले ।
- फाल्गुनी सूनु: – पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र मे उत्पन्न होनेवाले फाल्गुनीपुत्र ।
- अव्यग्र: – कभी व्याकुल न होनेवाले ।
- योगात्मा: – योगस्वरूप ।
- योगतत्पर: – योग में तत्पर रहनेवाले ।
- योगवित्: – योग के ज्ञाता ।
- योगकर्ता: – योग को बनानेवाले ।
- योग योनि: – योग की उत्पत्तिके कारण ।
- दिगम्बर: – दिशारूपी वस्त्रधारी ।
- अकारादिहकारान्तवर्णनिर्मित विग्रह: – सर्ववर्णस्वरूप ।
- उलूखलमुख: – ओखली के समान मुखार-विंदवाले ।
- सिद्धसंस्तुत: – सिद्धपुरुषों के दवारा जिनकी सम्यक् रीति से स्तुति होती है ।
- प्रमयेश्वर: – भूतगणों के स्वामी ।
- श्लिष्टजङ्घ: – सटी हुई जंघावाले ।
- श्लिष्टजानु: – मिले हुए घुटनोंवाले ।
- श्लिष्टपाणि: – मिले हुए हाथोंवाले ।
- शिखाधर: – चोटी धारण करनेवाले ।
- सुशर्मा: – सुंदर सुख देनेवाले ।
- अमितशर्मा: – असीम सुख देनेवाले ।
- नारायण परायण: – भगवान् नारायण में लीन रहनेवाले ।
- जिष्णु: -जीतनेवाले ।
- भविष्णु: – भविष्य में होनेवाले ।
- रोचिष्णु: – कांतिमान्।
- ग्रसिष्णु: – सर्वसन्हार करनेवाले शिवस्वरूप ।
- स्थाणु: – स्थिर रहनेवाले ।
- हरिरुद्रानुसेक: – भगवान् विष्णु और शंकर का अभिषेक करनेवाले ।
- कम्पन: – शत्रुओं को कम्पित करनेवाले ।
- भूमिकम्पन: – पृथ्वी को कम्पित करनेवाले ।
- गुण प्रवाह: – गुणों के प्रवाह अर्थात् सर्वगुणसमपन्न ।
- सूत्रात्मा: – यज्ञोपवीतधारी ।
- वीतराग स्तुतिप्रिय: – वीतराग पुरुष के द्वारा की गयी स्तुति जिन्हें प्रिय लगती है ।
- नागकन्याभयध्वंसी: – नागकन्याओं के भय का ध्वंस करनेवाले ।
- रुक्मवर्ण: – सुवर्ण के समान वर्णवाले ।
- कपालभृत: – कपाल धारण करनेवाले ।
- अनाकुल: – व्यग्रतारहित ।
- भवोपाय: – भवसागर पार करने के लिये उपायरूप ।
- अनपाय: – भगवान् श्रीराम से कभी वियुक्त न होनेवाले ।
- वेदपारग: – वेदों में पारंगत ।
- अक्षर: – अविनाशी ।
- पुरुष: – बुद्धिरूपी पुरी में सोनेवाले ।
- लोकनाथ: – सम्पूर्ण लोकों के स्वामी ।
- ऋक्षःप्रभु: -नक्षत्रों के स्वामी अर्थात् चंद्रस्वरूप ।
- दृढ: – हृष्ट – पुष्ट शरीर ।
- अष्टाङ्गयोगफलभुक्: – अष्टाङ्गयोग के फलका उपभोग करनेवाले ।
- सत्यसन्घ: – दृढ़ मैत्रीवाले ।
- पुरुष्टुत: – – देवताओं के द्वारा संस्तुत ।
- श्मशानस्थाननिलय: – श्मशान में निवास करनेवाले ।
- प्रेतविद्रावणक्षम: – प्रेत को तुरंत भगाने में समर्थ ।
- पञ्चाक्षरपर: – ‘ नम : शिवाय ’ इस प्रधान पञ्चाक्षर मंत्र को जपनेवाले ।
- पञ्चमातृक: – सीता, उर्मिला , माण्डवी ,श्रुतिकीर्ति और अंजना – इन पाँच माताओंवाले ।
- रञ्जनध़्वज: – लाल रंग की ध्वजावाले ।
- योगिनीवृन्द वन्द्य श्री: – योगिनीवृन्द के द्वारा वन्दनीय शोभास्वरूप।
- शत्रुघ्न: – शत्रुओं को हनन करनेवाले ।।
- अनन्त विक्रम: – अपार पराक्रमशाली ।
- ब्रह्मचारी: – ब्रह्म में विचरण करनेवाले ।
- इन्द्रियरिपु: – इंद्रियों के शत्रु अर्थात् जितेंद्रिय ।
- धृतदण्ड: – दण्दधारी ( गदाधारी )।
- दशात्मक: – दशावतारस्वरूप ।
- अप्रपञ्च: – संसार के प्रपञ्चसे रहित ।
- सदाचार: – सदाचारयुक्त ।
- शूरसेनाविदारक: – शूर पुरुषों की सेना को विदीर्ण करनेवाले ।
- वृद्ध: – सब प्रकार से बड़े ।
- प्रमोद: – प्रमोद-वृतिस्वरूप ।
- आनन्द: – आनंद स्वरूप ।
- सप्तद्वीपपतिन्धर: – सप्तद्वीपपतियों को धारण करनेवाले ।
- नवद्वारपुराधार: – नवद्वारवाले पुर अर्थात् शरीरों के आधार ।
- प्रत्यग्र: – सबके आगे चलनेवाले ।
- सामगायक: – सामवेद का गान करनेवाले ।
- षट्चक्रचाम: – सहस्त्रार आदि षट्चक्रों में परमात्मरूप से निवास करनेवाले ।
- स्वर्लोकाभयकृत: -स्वर्गलोक को अभय करनेवाले ।
- मानद: – मान देनेवाले ।
- मद: – सम्पूर्ण अहंकृतिरूप ।
- सर्ववश्यकर: – सबको वश में करनेवाले ।।
- शक्ति: – शक्तिस्वरूप ।
- अनन्त: – जिनके गुणों का अंत नहीं है ।
- अनन्तमङ्गल: – जो अनंत मंगलों से पूर्ण हैं ।
- अष्टमूर्ति: – पंच भूत, सुर्य , चंद्र , और आत्मा -ये आठ जिनकी मूर्ति अर्थात् स्वरूप हैं ।
- नयोपेत: – नीतिमान्।
- विरूप: – विविध रूपवाले ।
- सुरसुन्दर: – देवताओं से भी अधिक सुंदर ।
- धूमकेतु: – अग्निस्वरूप ।
- महाकेतु: – विशाल बुद्धिवाले ।
- सत्यकेतु: – जिनका सत्य आदर्श है ।
- महारथ: – महारथी ।
- नन्दिप्रिय: – नन्दि( शिववाहन ) जिनके प्रिय हैं ।
- स्वतन्त्र: – जो किसी के अधीन नहीं हैं ।
- मेखली: – कटिसूत्र धारण करनेवाले ।
- डमरुप्रिय: – जिनको डमरू प्रिय है उस शिव के स्वरूप ।
- लौहाङ्ग: – लोहे के समान दृढ़ शरीरवाले ।
- सर्ववित्: – सब कुछ जाननेवाले।
- धन्वी: – धनुर्धर ।
- खण्डल: – द्रोणागिरि को खण्डित कर लानेवाले ।
- शर्व: – शिवस्वरूप ।
- ईश्वर: – ईश्वरस्वरूप ।
- फलभुक्: – फल खानेवाली वानररूप ।
- फलहस्त: – जिनके करकमल में फल है ।
- सर्वकर्मफलप्रद: – सब कर्मों का फल प्रदान करनेवाले ।
- धर्माध्यक्ष: – धर्म-निधि के अध्यक्ष ।
- धर्मपाल: – धर्म का पालन करनेवाले । ।
- धर्म: – धर्मस्वरूप ।
- धर्मप्रद: – न्यायधर्म के दाता ।
- अर्थद: – अर्थ प्रदान करनेवाले ।
- पञ्चविंशतितत्त्वज्ञ: – पचीस तत्वों के यथार्थ ज्ञाता ।
- तारक: – भवसागर से तारनेवाले ।
- ब्रह्मतत्पर: – परब्रह्म में तत्पर ।
- त्रिमार्गवसति: – ज्ञानयोग , भक्तियोग और कर्मयोग – इन तीनों मार्गों के निवास-स्थल ।
- भीम: – भयंकरस्वरूप ।
- सर्वदुःख निबर्हण: – सारे दु:खों को दूर करनेवाले ।
- ऊर्जस्वान्: – बलशाली ।
- निष्कल: – निर्गुण ब्रह्मस्वरूप ।
- शूलि: – शूल धारण करनेवाले ।
- मौलि: – किरीट धारण करनेवाले ।
- गर्जन्निशाचर: – रात्रि में गर्जते हुए विचरण करनेवाले अर्थात् नि:शंक ।
- रक्ताम्बरधर: – लाल वर्ण का वस्त्र धारण करनेवाले ।
- रक्त: – लाल वर्णवाले ।
- रक्तमाल्य: – लाल रंग की माला से सुशोभित ।
- विभूषण: – अलंकारस्वरूप ।
- वनमाली: – वन्य पुष्पों की माला पहननेवाले ।
- शुभाङ्ग: – मंगलस्वरूप ।
- श्वेत: – श्वेत स्वरूप ।
- श्वेताम्बर: – शुक्ल वर्ण का वस्त्र धारण करनेवाले ।
- युवा: – सदा तरुणस्वरूप।
- जय: – विजेता ।
- अजयपरीवार: – जिसका विजय ही परिवार है ।
- सहस्रवदन: – सहस्त्र मुखवाले ।
- कपि: – कपिस्वरूप ।
- शाकिनी डाकिनी यक्षरक्षो भूतप्रभञ्जक: – शाकिनी, डाकिनी , यक्ष , राक्षस,भूत आदिका नाश करनेवाले ।
- सद्योजात: – तुरंत प्रकट होनेवाले।
- कामगति: -स्वच्छंद घूमनेवाले ।
- ज्ञानमूर्ति: – ज्ञान की साक्षात मूर्ति ।
- यशस्कर: – यशस्वी।
- शम्भुतेजा: – भगवान् शंकर के समान तेजस्वी ।
- सार्वभौम: – सब संसार के अधिपति ।
- विष्णुभक्त: – भगवान् विष्णु के भक्त।
- प्लवङ्गम: – मर्कटस्वरूप ।
- चतुर्नवतिमन्त्रज्ञ: – चौरानबे मंत्रों के ज्ञाता ।
- पौलस्त्यबलदर्पहा: – रावण के बल के घमंड को नष्ट करनेवाले ।
- सर्वलक्ष्मीप्रद: – सारे ऐश्वर्य को प्रदान करनेवाले ।
- श्रीमान: – सर्वैश्वर्यशाली ।
- अङ्गदप्रिय: – अंगद के प्यारे ।
- ईडित: – स्तुत्य ।
- स्मृतिबीजम् – स्मृतियों के बीज ।
- सुरेशान: – देवताओं के स्वामी ।
- संसार भय नाशन: – संसार के भय का नाश करनेवाले ।
- उत्तम: – श्रेष्ठ ।
- श्रीपरीवार: – श्री ( माता जानकी ) – के पुत्र ।
- श्रित: – आश्रयवान्।
- रुद्र: – रुद्रस्वरूप ।
1000: कामधुक्: – सारी कामनाओं को पूर्ण करनेवाले ।
इति हनुमान सहस्त्रनामावली
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